मेटाराइजियम एनिसोप्ली का उपयोग

metarhizium anisopliae(मेटाराइजियम एनीसोप्ली), अन्य आथ्रोपोडस के अतिरिक्त लगभग 200 कीटों (इन्सेक्टस) को रोगग्रस्त करता है| इसके बीजाणुओं का रंग गहरा हरा होता है और इससे संक्रमित बीमारी को मसकरडीन बीमारी कहा जाता है| क्योंकि इसके बीजाणुओं का रंग हरा होता है, इसलिए इस रोग को कीटों की हरी मसकरकीन बीमारी कहा जाता है| मेटाराइजियम एनीसोप्ली मनुष्य या अन्य जानवरों को संक्रमित या विषाक्त नहीं करता है|

किन-किन रोगों पर काम करता है

  •  सफेद लट (बीटल)
  • ग्रब्स
  • दीमक
  • सेमीलूपर
  • कटवर्म
  • पाइरिल्ला
  • मिलीबग और मॉहूं

किन-किन फसलों के लिए उपयोगी है

  • गन्ना
  • कपास
  • मूंगफली
  • मक्का
  • ज्वार
  • बाजरा
  • नीबू वर्गीय फलों

उपयोग 

  • मिटटी उपचार- इसका प्रयोग मिटटी उपचार में भी किया जा सकता है, इस फफूंद का पाउडर समिश्रण को पहले 1 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाकर रखें| तत्पश्चात खेत की जुताई आदि करके खेत तैयार कर लें| इसके बाद तैयार की गयी 100 किलोग्राम गोबर की खाद को एक एकड़ क्षेत्रफल में समान रूप से प्रयोग करना चाहिए|
  • छिड़काव- मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग विभिन्न उपर्युक्त कीटों की रोकथाम के लिए भी कामयाब पाया गया है| इन कीटों से बचाव के लिए मेटाराइजियम एनीसोप्ली खड़ी फसल में प्रयोग किया जाता है| इसके लिए 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए|
metarhizium anisopliae

विशेष उपयोग

  • खड़ी फसल में कीट रोकथाम हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें, जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है|
  • धान में भूरे फुदके के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली(metarhizium anisopliae) 1.15% डब्लू पी 2.50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
  • बैगन में तना और फलबेधक के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1% डब्लू पी, 2.5-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 500-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

प्रयोग में सावधानियाँ

  • सूक्ष्मजीवियों पर आधारित पेस्टीसाइड्स पर सूर्य की पराबैगनी किरणों का विपरीत प्रभाव पड़ता है, अतः इनका प्रयोग संध्या काल में करना चाहिए|
  • सूक्ष्म-जैविकों के बहुगुणन के लिए प्रयाप्त नमी और तापमान होना आवश्यक होता है|
  • सूक्ष्म-जैविक रोकथाम में आवश्यक कीड़ों की संख्या एक सीमा से ऊपर होनी चाहिए|
  • इनका आयु काल कम होता है, यानि इनको खरीदने एवं प्रयोग करने से पूर्व इनके बनाने की तिथि पर अवश्य ध्यान देना चाहिए
kailash kumar Sewda
kailash kumar Sewda

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