बरसाती प्याज की उन्नत खेती

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और वर्षा रहित जलवायु की सर्वोत्तम होती है। प्याज के लिए शुरू में 200 सें. गर्मी और 4 से 10 घंटे की धूप लेकिन बाद में 10सें. गर्मी तथा 12 घंटे धूप अच्छी होती है। अन्य देशों में इसकी औसत उपज 15 टन/हें. है। वर्ष 1980 से अभी तक इसकी उपज में 65.55% की वृद्धि हुई है। भारत वर्ष में औसत उपज 10.32 टन/हें. है जबकि विश्व के अन्य देशों में औसत उपज 15 टन/हें. है।

बीज की मात्रा

बीज की गुणवत्ता के आधार पर ही इसकी मात्रा निर्भर करती है। (1) बीज स्वस्थ हों, (2) बीज की अंकुरण क्षमता प्रमाणित हो, (3) बीज हमेशा नामांकित जगहों से प्राप्त करें।

एक हेक्टेयर प्याज लगाने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

प्याज की बुआई तीन प्रकार से की जाती है:

1. बीज से पौध तैयार कर खेत में लगाना: यह प्रचलित विधि है जिसके द्वारा प्याज की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

2. सीधे बीज डालकर: इसे बलुआही मिट्टी में उपयोग करते हैं। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 7-8 किलो प्रति हें. लगाते हैं।

3.गांठों से प्याज लगाना: छोटे प्याज के गांठों को अप्रैल-मई में लगायी जाती है। प्याज की 12-14 क्विंटल प्रति हें. गाँठ लगते हैं।

बीज बोने का समय        – मई के अंतिम सप्ताह से जून तक

प्रतिरोपण                – अगस्त

अलगाने का समय         – दिसम्बर-जनवरी

बरसाती प्याज के लिए सेट तैयार करना

दिसम्बर जनवरी के माह में प्याज के बिचडों में छोटा गाँठ बाँधने पर पौधशाला से ही उखाड़ लिये जाते हैं। इन्हें गुच्छों में बांधकर रख देते हैं। रखने से पहले इसे धूप में सुखाते भी हैं। इन सेटों का प्रतिरोपण अगस्त में करते हैं। इनकी गाँठ 2 से 2.5 सें. आकार की अधिक उपयुक्त है। 25 ग्राम बीज प्रतिवर्ग मी. में बोआई करें। 12-15 क्विंटल सेट्स/हेक्टेयर के लिए आवश्यक है।

सागा प्याज उगाने के तकनीक

सागा प्याज में पूरी गाँठ बनने से पहले पौधा सहित उखाड़ना ही सागा प्याज की खेती में व्यवहार करते हैं। सागा प्याज की खपत है, प्याज की तैयार फसल की तरह करते हैं। प्रयोग के आधार पर सागा प्याज की खेती के लिए अर्ली ग्रानो, पूसा हवाइट फ़्लैट तथा पूसा हवाइट राउंड उपयुक्त पाये गये हैं।

निकाई गुड़ाई एवं सिंचाई

प्याज एक ऐसी फसल है जिसमें बिचड़े की रोपनी के बाद यानि जब पौधे स्थिर हो जाते हैं तब इसमें निकौनी एवं सिंचाई की आवश्यकता पड़ती रहती है। इस फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें 15-20 सें.मी. सतह पफ फैलती है।

1.  इसमें पाँच दिनों के अंतराल पर सिंचाई चाहिए।

2.  इस फसल में 12-14 सिंचाई देना चाहिए।

3.  अधिक गहरी सिंचाई हानिकारक है।

4.  पानी की कमी से खेतों में दरार न बन पाये।

आरम्भ में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। पुन: गर्मी आने पर 5-7 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए।

हर दो-तीन सिंचाई के साथ घास-पात की निकासी आवश्यक है। इससे पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व एवं प्रकाश मिलता रहता है।

खरपतवार के नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी टोक ई 25 का छिड़काव 5 ली. प्रति हें. की दर से करना चाहिए।

रोग

प्याज की आंगमारी: पत्ते पर भूरे धब्बे बाद में पत्ते सूख जाते हैं – इसके लिए 0.15% डायथेन जेड-78 का छिड़काव करें।

मृदुरोमिल फफूंदी: पत्ते पहले पीले, हरे और लम्बे हो जाते हैं तथा उन पत्तों पर गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं। बाद में ये पत्ते मुड़ने और सूखने लगते हैं।

इसकी रोक थाम के लिए 0.35% ताम्बा जनित फफूंदी नाशक दवा का छिड़काव करें।

गले का गलन: इसके प्रकोप होने पर शल्क गलकर गिरने लगते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए फसल को कीड़े और नमी से बचावें।

प्याज का थ्रिप्स: इसके पिल्लू कीड़े पत्तों और जड़ों को छेद कर रस चूसते हैं। फलस्वरूप पत्तियों पर उजली धारियाँ दिखाई पड़ने लगते हैं और सारा फसल सफेद दिखने लगते हैं।

रोकथाम: इसके रोकथाम के लिए कीटनाशी दवा (मालाथियान) का छिड़काव करें।

फसल की कटाई: जब पौधों के तने सूखने लगे और सूखकर तना पीछे मुड़ने लगे तब प्याज के कंदों को खुरपी के सहारे उखाड़ लिया जाय।

गाँठ सहित पौधों को तीन-चार सप्ताह तक छाया में अवश्य सूखा लें।

Naresh Sewda
Naresh Sewda

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