प्याज एक वनस्पति है जिसका कन्द सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और बिहार में प्रमुख रूप से प्याज की खेती की जाती है।
यह फसल अधिक उपज के लिए उन्नत किस्मों और विधियों का इस्तेमाल करके उगाई जाती है
नर्सरी तैयारी या पौध की तैयारी:
प्याज की नर्सरी को जून से जुलाई के बीच तैयार किया जा सकता है।
नर्सरी में प्याज के बीज की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर के लिए 8 से 9 किलोग्राम प्याज के बीज की जरूरत होती है।
जलवाऊ और मिट्टी:
प्याज की खेती के लिए उत्तम जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता होती है।
मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
प्याज की खेती का समय:
खरीफ की फसल के लिए नर्सरी जून से जुलाई में तैयार की जा सकती है।
रबी की फसल के लिए नर्सरी नवंबर-दिसंबर में तैयार की जा सकती है।
भारत में प्याज की खेती के लिए कई प्रकार की किस्में उपलब्ध हैं। यहां कुछ प्रमुख प्याज की उन्नत किस्में हैं:
भीमाराज: खरीफ सीजन के लिए विकसित की गई है।
पूसा रेड: लाल रंग के और बोल्टिंग की समस्या कम होती है।
पूसा रतनार: बड़े आकार के और मिठास वाले होते हैं।
निफाद 53: उत्तरी भारत में खरीफ सीजन में उगाया जाता है।
एग्रीफाउंड डार्क रेड: खरीफ मौसम के लिए विकसित है।
पटना रेड: लाल रंग के और तीखे होते हैं।
उदयपुर 102: गोल और सफ़ेद रंग के होते हैं।
नासिक रेड: मध्यम आकार के और हल्के रंग के होते हैं।
प्याज की खेती में कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हो सकती हैं:
रोग और कीट प्रबंधन:
फुसारियम या प्याज के फसल में फुसारियम यूवीएम रोग
थ्रिप्स (कीट)
थ्रिप्स टॉबैको रिंग स्पॉट वायरस (टीआरएसवी)
अमेरिकन बोल्टिंग वायरस (एबीवी)
उपज की गिरावट:
अच्छे जलवायु और उपयुक्त मिट्टी के बावजूद, अगर उपज की देखभाल नहीं की जाती है, तो उपज में कमी हो सकती है।
बारिश और जलवायु संक्रमण:
अधिक बारिश के समय पर प्याज की खेती करने से जलवायु संक्रमण हो सकता है।
उपज की बिक्री और मार्केट विकल्प:
अगर उपज की बिक्री और मार्केट विकल्पों के बारे में सही जानकारी नहीं हो, तो उपज की खेती में समस्याएँ हो सकती हैं।
प्याज की फसल में अनेक प्रकार के रोग और कीट उत्पादन और व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख प्याज रोगों का प्रबंधन है:
ब्राउन रॉट (Brown Rot):
पाथोजन: Pseudomonas aeruginosa
लक्षण: बल्ब की ताजगी और अंदरीकरण की गहरी भूरी रंग की दिखाई देती है। बल्ब के अंदरीकरण से शुरू होकर बाहरी ताजगी तक फैलता है।
प्रबंधन: उचित स्टोरेज से पहले ठीक से सुखाना। बुल्ब के ऊपरी हिस्से को 2.5-3.0 सेंटीमीटर ऊपर काटने से बैक्टीरियल संक्रमण कम होता है।
सॉफ्ट रॉट (Soft Rot):
पाथोजन: Erwinia caratovora
लक्षण: बल्ब के अंदरीकरण की एक या एक से अधिक भीतरी मांसपेशियों की गहरी रंगीनी और नरम घुलने की स्थिति होती है।
प्रबंधन: उचित ताजगी से पहले सुखाना। उपज के समय लाइट सिंचाई की आवश्यकता होती है।
प्याज की फसल में अनेक प्रकार के रोग और कीट उत्पादन और व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख प्याज रोगों का प्रबंधन है:
ब्राउन रॉट (Brown Rot):
पाथोजन: Pseudomonas aeruginosa
लक्षण: बल्ब की ताजगी और अंदरीकरण की गहरी भूरी रंग की दिखाई देती है। बल्ब के अंदरीकरण से शुरू होकर बाहरी ताजगी तक फैलता है।
प्रबंधन: उचित स्टोरेज से पहले ठीक से सुखाना। बुल्ब के ऊपरी हिस्से को 2.5-3.0 सेंटीमीटर ऊपर काटने से बैक्टीरियल संक्रमण कम होता है।
सॉफ्ट रॉट (Soft Rot):
पाथोजन: Erwinia caratovora
लक्षण: बल्ब के अंदरीकरण की एक या एक से अधिक भीतरी मांसपेशियों की गहरी रंगीनी और नरम घुलने की स्थिति होती है।
प्रबंधन: उचित ताजगी से पहले सुखाना। उपज के समय लाइट सिंचाई की आवश्यकता होती है।